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एनटीसीए की बैठक पहली बार राष्ट्रीय राजधानी के बाहर अरुणाचल प्रदेश में हुई

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नई दिल्ली(रीजनल एक्स्प्रेस)। केन्द्रीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्री श्री भूपेंद्र यादव की अध्यक्षता में आज अरुणाचल प्रदेश के पक्के बाघ अभयारण्य में राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (एनटीसीए) की 20वीं बैठक आयोजित की गई।

एनटीसीए के इतिहास में पहली बार इसकी बैठक राष्ट्रीय राजधानी से बाहर हुई। बाघ अभयारण्य, स्थानीय मुद्दों आदि के बारे में प्रत्यक्ष जानकारी प्राप्त करने के उद्देश्य से केन्द्रीय मंत्री ने एनटीसीए की बैठकों को दिल्ली के बाहर वन क्षेत्रों में या बाघ अभयारण्यों में आयोजित किए जाने का निर्देश दिया था।

इस अवसर पर, केन्द्रीय मंत्री ने कहा कि हमें देश भर में, जहां अपार वनस्पति एवं जीव-जंतु उपलब्ध हैं, अपने बाघ अभयारण्यों को बढ़ावा देना चाहिए और साथ ही साथ वनों पर निर्भर लोगों की आजीविका सुनिश्चित करनी चाहिए।

केन्द्रीय मंत्री ने वन क्षेत्र और बाघ अभयारण्य के संरक्षण एवं बेहतर विकास के लिए स्थानीय लोगों की सक्रिय भागीदारी पर भी जोर दिया। उन्होंने कहा कि हमें विभिन्न मुद्दों से जूझने वाले वन अधिकारियों, स्थानीय ग्रामीणों, विशेषज्ञों, छात्रों सहित सभी हितधारकों के साथ बैठक करनी चाहिए।

इस अवसर पर, स्थानीय ग्रामीणों द्वारा लगभग 100 एयर गन सरेंडर की गईं। उत्तर पूर्वी राज्यों में एयर गन का बड़े पैमाने पर इस्तेमाल एक समस्या थी। अरुणाचल प्रदेश ने मार्च 2021 में एयर गन सरेंडर अभियान शुरू किया था जिसके अब तक अच्छे परिणाम सामने आए हैं।

केन्द्रीय मंत्री ने जंगलों में बाघों की पुनः प्रस्तुति और पूरकता के संबंध में मानक संचालन प्रक्रिया, बाघ अभयारण्यों के लिए फारेस्ट फायर ऑडिट प्रोटोकॉल, एनटीसीए द्वारा तैयार भारत में बाघ अभयारण्यों के प्रबंधन का प्रभावशीलता संबंधी मूल्यांकन (एमईई) के बारे में तकनीकी मैनुअल का विमोचन किया।

भारत के जंगलों में दुनिया के लगभग 70 प्रतिशत बाघ रहते हैं। ये बाघ देश के विभिन्न भू-भागों में बसे हुए हैं। एक ओर कुछ भू-भागों में प्राकृतिक वास और शिकार-आधार के अनुरूप बाघों की सघन और सुगठित आबादी है, वहीं कुछ ऐसे प्राकृतिक वास भी हैं जहां विभिन्न कारणों से बाघों की संख्या अपेक्षाकृत कम तो है लेकिन वहां बाघों की संख्या बेहतर करने की व्यापक संभावनाएं हैं। कुछ अन्य प्राकृतिक वास ऐसे भी हो सकते हैं जहां बाघों की संख्या लुप्त हो गई है।

ऐसे परिदृश्य में, कभी-कभी बाघों की पुनः प्रस्तुति या उनकी मौजूदा आबादी को पूरक बनाना अनिवार्य हो जाता है। यह एक संवेदनशील और तकनीकी कार्य होने के कारण, एनटीसीए ने पुन: प्रस्तुति और पूरकता के संबंध में एक मानक संचालन प्रोटोकॉल (एसओपी) तैयार किया है। इस एसओपी में इस विषय पर उपलब्ध वैज्ञानिक ज्ञान के साथ-साथ भारत की विशिष्ट परिस्थितियों को ध्यान में रखा गया है। जहां तक जंगलों में बाघों की पुनः प्रस्तुति और पूरकता का प्रश्न है, कुछ इलाकों में बाघ ऐतिहासिक रूप से मौजूद थे लेकिन अब विभिन्न कारणों से विलुप्त हो रहे हैं या कम घनत्व में पाए जा रहे हैं, पर वहां बाघों की उपस्थिति को बढ़ावा देने वाले कल्याणकारी कारक अभी भी मौजूद हैं या पर्याप्त प्रबंधन संबंधी उपायों के जरिए बाघों की संख्या को बेहतर किया जा सकता है। इसलिए, एनटीसीए ‘टाइगर रीइंट्रोडक्शन एंड सप्लीमेंटेशन इन वाइल्ड प्रोटोकॉल’ शीर्षक वाला एक एसओपी जारी कर रहा है।

बाघ अभयारण्यों के लिए फारेस्ट फायर ऑडिट प्रोटोकॉल

जंगल के विविध आयामों को बनाए रखने में जंगल की आग एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। आग स्वस्थ जंगलों, पोषक तत्वों के पुनर्चक्रण, पेड़ों की विभिन्न प्रजातियों को पुनर्जीवित करने, आक्रामक खरपतवारों एवं रोगजनकों को हटाने और कुछ वन्यजीवों के प्राकृतिक वास को बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है। कभी – कभार लगने वाली आग ईंधन के उस भार को कम कर सकती है जो बड़ी और अपेक्षाकृत अधिक विनाशकारी आग को भड़काती है। हालांकि, जैसे-जैसे आबादी और वन संसाधनों की मांग बढ़ी है, आग का चक्र संतुलन से बाहर हो गया है और थोड़े अंतराल पर बार – बार लगनेवाली ये अनियंत्रित आग वनों के क्षरण और जैव – विविधता के नुकसान के प्रमुख कारणों में से एक बन गई है। जंगल में आग की बढ़ती घटनाएं अब एक वैश्विक चिंता का विषय बन गई हैं। इसलिए, बाघ अभयारण्यों के प्रबंधकों को आग से निपटने की उनकी तैयारियों का आकलन करने और जंगल में लगने वाली आग के संपूर्ण जीवन चक्र का प्रबंधन करने में मदद करने के लिए, एनटीसीए ने बाघ अभयारण्यों के लिए फारेस्ट फायर ऑडिट प्रोटोकॉल तैयार किया है और अब इसे जारी किया जा रहा है।

भारत में बाघ अभयारण्यों के प्रबंधन का प्रभावशीलता संबंधी मूल्यांकन (एमईई)

बाघों का अस्तित्व संरक्षण और प्रबंधन के प्रयासों पर निर्भर है। संरक्षण के प्रयासों की सफलता के साथ-साथ प्रबंधन इनपुट को निर्देशित करने के लिए, बाघ अभयारण्यों के प्रबंधन की प्रभावशीलता का आकलन करना महत्वपूर्ण है। भारत दुनिया के उन चुनिंदा देशों में शामिल है, जिन्होंने एमईई प्रक्रिया को संस्थागत रूप दिया है। बाघ अभयारण्यों के प्रबंधन के प्रभावशीलता संबंधी मूल्यांकन (एमईई) के वैश्विक स्तर पर स्वीकृत ढांचे ने देश में बाघ संरक्षण के प्रयासों का सफलतापूर्वक मूल्यांकन करने का मार्ग प्रशस्त किया है। बाघ अभ्यारण्य में एमईई संबंधी कवायद 2006 में शुरू की गई थी और इसके चार चक्र पूरे हो चुके हैं। तब से अबतक इस संबंध में काफी अनुभव प्राप्त हुए हैं और इस पूरी प्रक्रिया की समीक्षा तथा उस पर फिर से गौर करने की जरूरत महसूस की गई। तदनुसार, 2022 से शुरू होने वाले एमईई संबंधी कवायद के पांचवें चक्र के लिए एमईई के मानदंडों की समीक्षा और उस पर फिर से गौर करने के लिए राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण द्वारा एक समिति का गठन किया गया। इस समिति के गठन के पीछे देश के विविध बाघ अभयारण्यों के विश्लेषण में समानता लाने और मूल्यांकनकर्ताओं का आगामी वित्तीय वर्ष में किए जाने वाले आकलनों के संदर्भ में मार्गदर्शन करने का इरादा था। इस समिति द्वारा दिए गए सुझावों के आधार पर, एनटीसीए द्वारा भारत में बाघ अभयारण्यों के प्रबंधन का प्रभावशीलता संबंधी मूल्यांकन (एमईई) के बारे में एक तकनीकी मैनुअल जारी किया जा रहा है।

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