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डिजिटल शिक्षण से डिजिटल विभाजन को बढ़ावा नहीं मिलना चाहिए : उपराष्ट्रपति

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नई दिल्ली(रीजनल एक्स्प्रेस)। उपराष्ट्रपति श्री एम. वेंकैया नायडु ने आज इस बात पर जोर दिया कि केंद्र और राज्य सरकारें डिजिटल शिक्षण को बढ़ावा देने के लिए कदम उठा रही हैं, लेकिन यह सुनिश्चित करना महत्वपूर्ण है कि कोई डिजिटल विभाजन न हो। उन्होंने इसे सुनिश्चित करने के लिए विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों व सुदूर इलाकों में इंटरनेट की पहुंच बढ़ाने और ‘शैक्षणिक अनुभव के केंद्र में समावेशिता को रखने’ का आह्वाहन किया। श्री नायडू ने कहा, ‘इसके लिए मंत्र- ग्रहण करना, जोड़ना, प्रबुद्ध करना और सशक्त बनाना होना चाहिए।’

उपराष्ट्रपति ने आज चेन्नई स्थित नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्निकल टीचर्स ट्रेनिंग एंड रिसर्च (एनआईटीटीटीआर) में खेल केंद्र और मुक्त शैक्षणिक संसाधन (ओबीआर) का उद्घाटन किया। इस अवसर पर श्री नायडु ने महामारी के चलते शिक्षा के प्रभावित होने पर चिंता व्यक्त की। उन्होंने कहा कि विद्यालय बंद होने से लड़कियां, वंचित पृष्ठभूमि के बच्चे, ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले, दिव्यांग बच्चे और जनजातीय अल्पसंख्यकों के बच्चे अपने साथियों की तुलना में अधिक प्रभावित होते हैं।

इस अवसर पर उपराष्ट्रपति ने एनआईटीटीटीआर खुला शिक्षण संसाधन (ओईआर) का भी उद्घाटन किया। उन्होंने इसे दूरस्थ शिक्षा के माध्यम से समावेशिता में सुधार की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम बताया। श्री नायडु ने कहा कि इससे शिक्षकों को अपने ज्ञान के आधार और शिक्षण पद्धति में सुधार करने में सहायता मिलेगी।

सरकारों से सुधारात्मक कार्रवाई का आह्वाहन करते हुए श्री नायडु ने सुझाव दिया कि ई-शिक्षण में शिक्षकों के कौशल को उन्नत करना महत्वपूर्ण उपायों में से एक है।

भारत में गुणवत्तापूर्ण शिक्षक प्रशिक्षण के महत्व पर जोर देते हुए उन्होंने कहा कि शिक्षक एक राष्ट्र की बौद्धिक जीवन रेखा का निर्माण करते हैं और इसके विकास को निर्धारित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

श्री नायडु ने आने वाले दिनों ऐसे शिक्षकों के निर्माण की जरूरत पर जोर दिया जो ‘शिक्षार्थी और ज्ञान के निर्माता हों – ऐसे शिक्षक जो जीवन को समझते हों और मानवीय स्थिति को ऊपर उठाना चाहते हों। उन्होंने आगे कहा, ‘’हमें अपनी कक्षाओं, विशेष रूप से ग्रामीण भारत में प्रेरित करने, परिवर्तन लाने वाले शिक्षकों की आवश्यकता है।’

भारत के जनसांख्यिकीय लाभांश पर बात करते हुए उन्होंने कहा कि भारत की विशाल युवा आबादी को जिम्मेदार नागरिक बनाने में शिक्षकों की बड़ी जवाबदेही है। श्री नायडु ने कहा, “शिक्षा का मतलब केवल डिग्री नहीं है।” उपराष्ट्रपति ने आगे कहा कि शिक्षा का वास्तविक उद्देश्य ज्ञान, सशक्तिकरण और बौद्धिकता है। उपराष्ट्रपति ने संस्थानों से छात्रों में एक सुदृढ़ और सकारात्मक सोच विकसित करने पर अपना ध्यान केंद्रित करने का भी आह्वाहन किया।

उपराष्ट्रपति ने ‘कोविड वॉरियर्स’ की भूमिका निभाने और महामारी के दौरान अपने छात्रों की शैक्षणिक निरंतरता सुनिश्चित करने को लेकर अपना सर्वश्रेष्ठ प्रयास करने के लिए शिक्षकों की सराहना की। उन्होंने इस बात का उल्लेख किया कि शिक्षण समुदाय ने तकनीक की खोज की और छात्रों को पढ़ाई में सहायता करने के लिए अपनी रणनीतियों व कार्यप्रणाली को फिर से बनाने में उल्लेखनीय लचीलापन दिखाया है।

राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी)- 2020 को दूरदर्शी दस्तावेज बताते हुए उपराष्ट्रपति ने कहा कि यह हमारे देश में शिक्षा के वातावरण को रूपांतरित करना चाहता है और युवा शिक्षकों को ऊर्जाशील व प्रेरित करने के महत्व को रेखांकित करता है। उन्होंने आगे शिक्षकों से बौद्धिक रूप से जीवंत व सहयोगी वातावरण में महत्वपूर्ण राष्ट्रीय और वैश्विक चुनौतियों व अवसरों का समाधान करने के लिए अभिनव रणनीतियों को अपनाने का अनुरोध किया।

भारत की शिक्षा प्रणाली को उपनिवेशीकरण से मुक्त करने की जरूरत पर जोर देते हुए उपराष्ट्रपति ने भारत की प्राचीन ज्ञान प्रणालियों और उन महान संतों से प्रेरणा लेने का आह्वाहन किया, जिन्होंने हमारे देश को विश्व गुरु- एक ज्ञान दाता बनाया था। उन्होंने उस स्थिति को फिर से प्राप्त करने का आह्वाहन करते हुए जाति, धर्म, क्षेत्र और भाषा के आधार पर समाज को विभाजन से मुक्त बनाने की आवश्यकता पर बल दिया।

उपराष्ट्रपति ने भारतीय भाषाओं को बढ़ावा देने और उन्हें संरक्षित करने की जरूरत पर जोर दिया। वहीं, श्री नायडु ने भारतीय भाषाओं में तकनीकी पाठ्यक्रम शुरू करने के लिए एआईसीटीई (अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद्) की सराहना की। श्री नायडु ने इस बात को दोहराया कि किसी भी भाषा को थोपने या विरोध करने का काम नहीं किया जाना चाहिए। उन्होंने आगे कहा कि जितना संभव हो उतनी भाषाएं सीखनी चाहिए, लेकिन मातृभाषा को प्राथमिकता दी जानी चाहिए।

उपराष्ट्रपति ने शिक्षकों से छात्रों को ‘अनुभव संबंधी शिक्षा’ प्रदान करने की सलाह दी। श्री नायडु ने कहा कि इस तरह की शिक्षण पद्धति रचनात्मकता और नवीन परिणामों को बढ़ावा देने में सहायता करती है। उन्होंने आगे शिक्षण को संचार के एक तरफा माध्यम से दो तरफा माध्यम में ले जाने का आह्वाहन किया, जहां गतिविधियों को सामग्री के संदर्भ से जोड़ने की जरूरत होती है।

उपराष्ट्रपति ने एनआईटीटीटीआर से बेहतर ढांचागत और वैज्ञानिक रूप से डिजाइन किए गए प्रशिक्षण कार्यक्रमों के माध्यम से उत्कृष्ट शिक्षकों के निर्माण में अग्रणी भूमिका निभाने का आह्वाहन किया। उन्होंने आगे पिछले दो वर्षों में 60,000 से अधिक शिक्षार्थियों को प्रशिक्षण देने में इसके प्रयासों की सराहना की। श्री नायडु ने विदेश मंत्रालय के भारतीय तकनीकी और आर्थिक सहयोग के तहत राष्ट्रीय के साथ-साथ अंतरराष्ट्रीय प्रतिभागियों को प्रशिक्षण देने के लिए संस्थान की सराहना की।

उपराष्ट्रपति ने एनआईटीटीटीआर में खेल केंद्र के उद्घाटन पर अपनी प्रसन्नता व्यक्त की। श्री नायडु, जो खुद एक खेल प्रेमी हैं, ने शिक्षकों को स्वस्थ रहने व अपने छात्रों को नियमित रूप से खेल या योग का अभ्यास करने के लिए प्रेरित करने का आह्वाहन किया। उन्होंने कहा कि इस महामारी ने रोगों के खिलाफ अच्छी प्रतिरक्षा के लिए शारीरिक स्वास्थ्य और स्वस्थ भोजन के महत्व को रेखांकित किया है।

अपने संबोधन के बाद एनआईटीटीटीआर के छात्रों और शिक्षकों के साथ बातचीत की। इस दौरान श्री नायडु ने विशेष रूप से तकनीकी संस्थानों में शिक्षण विधियों को रूपांतरित करने की जरूरत पर जोर दिया। एक प्रश्न के उत्तर में उन्होंने ग्रामीण क्षेत्रों में अच्छे अस्पतालों, विद्यालयों, सड़कों व कनेक्टिविटी जैसी बेहतर सुविधाओं का निर्माण करने का आह्वाहन किया, जिससे ग्रामीण-शहरी विभाजन को समाप्त किया जा सके और शहरों की ओर पलायन को रोका जा सके। इसके अलावा उन्होंने राज्य सरकारों से स्मार्ट सिटी कार्यक्रम पर अपना ध्यान केंद्रित करने और अन्य शहरी केंद्रों को अपनी सुविधाओं में सुधार को लेकर प्रेरित करने के लिए मॉडल शहर बनाने का भी अनुरोध किया।

इस कार्यक्रम में तमिलनाडु के स्वास्थ्य मंत्री थिरु मा सुब्रमण्यम, एनआईटीटीटीआर- चेन्नई की बोर्ड ऑफ गवर्नर्स के अध्यक्ष डॉ. वी.एस.एस. कुमार, एनआईटीटीटीआर- चेन्नई की निदेशक डॉ. उषा नतेसन, एनआईटीटीटीआर के प्रोफेसर डॉ. जी. कुलंथीवेल और अन्य उपस्थित थे।

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